होर्मुज जलडमरूमध्य तेल संकट : ईरानी संसद द्वारा स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करने के फैसले के बाद आज क्रूड ऑयल की कीमतों में उछाल देखा गया है। आइए जानते हैं कि इसका भारत पर आगे क्या प्रभाव पड़ सकता है।

ईरान और इजराइल के बीच चल रहे युद्ध में अमेरिका के हस्तक्षेप से हालात और गंभीर हो गए हैं। दोनों देशों के बीच लगातार भारी गोलीबारी जारी है। इस बीच, कल ईरानी संसद में कच्चे तेल के व्यापार के लिए अहम समुद्री मार्ग स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करने का प्रस्ताव रखा गया। हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय अभी लिया जाना बाकी है। इसी फैसले के बाद आज क्रूड ऑयल की कीमतों में तेजी दर्ज की गई है। आइए जानते हैं कि स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के बंद होने का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

होर्मुज को लेकर लिए गए फैसले का सीधा असर आज क्रूड ऑयल की कीमतों पर देखने को मिल रहा है। फिलहाल देश में कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 2 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई है, और यह 6,525.00 रुपये प्रति बैरल पर पहुंच गया है। बीते दिन की तुलना में इसमें करीब 120 रुपये प्रति बैरल की तेजी आई है। संसद में आए प्रस्ताव के चलते काले सोने की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया है। अगर खामेनेई इस फैसले को मंजूरी देते हैं, तो क्रूड ऑयल की कीमतों पर क्या असर पड़ेगा और इसका भारत पर कितना प्रभाव होगा, आइए जानते हैं।

होर्मुज जलडमरूमध्य तेल संकट : होर्मुज पर दुनिया की निर्भरता

स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के माध्यम से अमेरिका से लेकर अफ्रीका तक कई देश इस खाड़ी मार्ग पर निर्भर हैं। ICRA की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में इस मार्ग से सबसे अधिक तेल आयात चीन और जापान ने किया है।

भारत को होगा नुकसान

रिसर्च फर्म ICRA के अनुसार, भारत अपने कुल कच्चे तेल का 45-50% हिस्सा इराक, सऊदी अरब, कुवैत और यूएई जैसे देशों से आयात करता है। खास बात यह है कि 2025 में रूस की हिस्सेदारी भारत के कुल तेल आयात में 36% रही। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कच्चे तेल की कीमत में प्रति बैरल 10 डॉलर की बढ़ोतरी होती है, तो भारत का वार्षिक तेल आयात खर्च 13 से 14 बिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है। इसका सीधा असर चालू खाता घाटे (CAD) पर पड़ेगा, जो देश की जीडीपी का 0.3% तक बढ़ सकता है।

जीडीपी ग्रोथ पर पड़ेगा असर?

ICRA के मुताबिक, यदि 2026 में कच्चे तेल की औसत कीमत 80-90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचती है, तो चालू खाता घाटा (CAD) वर्तमान 1.2-1.3% से बढ़कर जीडीपी का 1.5-1.6% हो सकता है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ेगा और USD/INR विनिमय दर प्रभावित हो सकती है। इसके साथ ही, कच्चे तेल की कीमत में हर 10% की वृद्धि से थोक महंगाई दर (WPI) में 0.8-1% और उपभोक्ता महंगाई दर (CPI) में 0.2-0.3% की बढ़ोतरी संभव है।

तेल की बढ़ती कीमतें भारत की आर्थिक विकास दर पर भी असर डाल सकती हैं। ICRA का कहना है कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो भारतीय उद्योगों की लाभप्रदता प्रभावित होगी और 2026 में जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटकर 6.2% तक आ सकता है।

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