नीना गुप्ता पंचायत 4 : नीना गुप्ता ने हाल ही में रिलीज हुई अमेज़न प्राइम वीडियो की वेब सीरीज ‘पंचायत 4′ में एक बार फिर मंजू देवी के किरदार से दर्शकों का दिल जीत लिया। इस भूमिका में वह पंचायत की राजनीति और चुनावी चालों में पूरी तरह माहिर नजर आईं। हाल ही में एक इंटरव्यू में नीना गुप्ता ने खुलासा किया कि अगर कभी इंडस्ट्री में कलाकारों के चुनाव कराए गए, तो वह क्यों उसमें हिस्सा नहीं लेना चाहेंगी।
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नीना गुप्ता पंचायत 4 : जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई।
वेब सीरीज पंचायत सीजन 4 में ग्राम प्रधान मंजू देवी के रूप में नीना गुप्ता ने एक बार फिर अपनी सशक्त एक्टिंग का परिचय दिया। शो में वह न सिर्फ जनसेवा करती दिखीं, बल्कि विरोधी पक्ष के लोगों को अपने पक्ष में लाने और वोट के बदले मुफ्त समोसे जैसी चुनावी रणनीतियां अपनाते हुए भी नजर आईं।
हाल ही में उन्होंने यह भी बताया कि इंडस्ट्री में एक्टर्स की यूनियन बन पाना क्यों लगभग असंभव है।
इंडस्ट्री में कोई एकता नहीं है– नीना गुप्ता
नीना गुप्ता ने हाल ही में खुलासा किया कि वह फिल्म इंडस्ट्री में किसी भी प्रकार के चुनावी माहौल से दूरी बनाए रखना पसंद करेंगी। उनका साफ कहना है कि अगर कभी कलाकारों के बीच चुनाव जैसी स्थिति बनी, तो वह उसमें हिस्सा लेने के पक्ष में नहीं होंगी।
उन्होंने कहा, “इस इंडस्ट्री में कलाकारों के बीच कोई एकता नहीं है। वे कभी एकजुट नहीं हो सकते।
कलाकारों की यूनियन पर बात करते हुए नीना ने आगे कहा, “फिल्म इंडस्ट्री में मेकअप आर्टिस्ट, राइटर्स, प्रोडक्शन और अन्य तकनीकी क्षेत्रों से जुड़े लोगों की यूनियन होती है, लेकिन एक्टर्स की कोई मज़बूत यूनियन नहीं है — और शायद कभी हो भी नहीं सकती। वजह ये है कि हम एक–दूसरे से जलते हैं। अगर मैं किसी प्रोड्यूसर से कहूं कि इतनी कम फीस में काम नहीं करूंगी, तो कोई दूसरी एक्ट्रेस सामने आकर कहेगी – ‘मैं तो मुफ्त में कर दूंगी!’ अब ऐसे में इंडस्ट्री में एकता की उम्मीद कैसे की जा सकती है?”
दूसरों के हिसाब से चलने पर बहुत बार गिरी
पंचायत‘ शो के एक मोड़ पर नीना गुप्ता का किरदार मंजू देवी अपने पति बृजभूषण दुबे से नेतृत्व की बागडोर अपने हाथों में ले लेती है। वह अब सिर्फ उनके फैसलों पर हस्ताक्षर करने वाली प्रधान नहीं रहती, बल्कि सचिव जी के साथ मिलकर खुद फैसले लेने लगती है।
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अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए नीना कहती हैं, “ऐसा कई बार हुआ जब मैं अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी, लेकिन मुझे दूसरों के हिसाब से चलने के लिए मजबूर किया गया। संघर्ष के उन दिनों में मैं कई बार हार गई, कई बार गिरी। लेकिन जब बार–बार गिरना पड़ता है, तो आपको समझ आता है कि फैसले खुद लेने होंगे। कोई और आपको उठाने नहीं आता। मैंने भी यही किया — जब लोगों ने मुझे अपने मन की चीजें करने से रोका, तब मैंने ठान लिया कि अब खुद के दम पर आगे बढ़ूंगी और वही करूँगी जो मैं सही मानती हूं।नीना की जिंदगी में भी ऐसे कई मौके आए, जब उन्हें एहसास हुआ कि उनकी जिंदगी की दिशा कोई और तय कर रहा है — और तब उन्होंने खुद की राह चुनने का फैसला लिया।