जुबैदा बेगम विमान हादसा : श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित फिल्मज़ुबैदा’, जो साल 2001 में रिलीज़ हुई थी, एक दर्दनाक और सच्ची घटना पर आधारित थी। इसकी कहानी का अंत एक भयावह विमान हादसे के साथ होता है, जिसमें जोधपुर के महाराजा और उनकी दूसरी पत्नी जुबैदा की tragically मौत हो जाती है। इस फिल्म में करिश्मा कपूर, रेखा और मनोज बाजपेयी ने प्रमुख भूमिकाएं निभाईं थीं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर वह हादसा कैसे हुआ था?

कुछ हादसे इतिहास में ऐसे निशान छोड़ जाते हैं, जिनकी कहानियां समय के साथ धुंधली नहीं पड़तीं। हाल ही में हुए अहमदाबाद विमान हादसे की तरह, ज़ुबैदा और जोधपुर महाराजा का हवाई हादसा भी हमेशा के लिए स्मृति मेंगया। चीखपुकार, आंसू और बिछड़ने की पीड़ाये वे दृश्य हैं जिन्हें भुला पाना आसान नहीं होता।

चालीस के दशक की मशहूर अदाकारा ज़ुबैदा बेगम, अपने साहस और सौंदर्य के लिए जानी जाती थीं। उनकी जिंदगी भी उतनी ही असाधारण थी जितना उनका अंत रहस्यमय। एक विमान हादसे में उनकी और उनके पति, जो जोधपुर के महाराजा थे, की मृत्यु हो गई। यह हादसा सिर्फ एक दुर्घटना था या कोई गहरी साजिश? वर्षों बाद भी यह सवाल अनुत्तरित है।

इतिहास के पन्नों में दर्ज यह घटना आज भी रहस्य से घिरी हुई है। कहते हैं, उस दिन विमान में जो कुछ हुआ, उसने कई सवालों को जन्म दियाऔर इन सवालों के जवाब आज भी लोगों को बेचैन करते हैं। इतना ही नहीं, जोधपुर के महल में एक भटकती आत्मा की कहानियां भी लोककथाओं में शामिल हो गई हैं। जैसेजैसे लोग यह किस्सा सुनते हैं, अपनेअपने अनुभव और कल्पनाएं जोड़ देते हैंक्योंकि हर त्रासदी के पीछे एक अनसुनी कहानी होती है।

पहली बोलती फिल्म आलम आरा में काम किया था

ज़ुबैदा बेगम हिंदी सिनेमा की जानीमानी अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मूक फिल्मों के दौर से लेकर बोलती फिल्मों तक कई यादगार भूमिकाएं निभाईं। चाहे किरदार छोटा हो या बड़ा, वह हर रोल में पूरी संजीदगी और समर्पण के साथ नजर आती थीं। लेकिन उनके फिल्मी करियर के पीछे एक निजी दुनिया भी थी, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते थेयहां तक कि उनके अपने परिवार को भी नहीं।

ज़ुबैदा का फिल्मों के प्रति प्रेम उनके पिता से छुपा हुआ था, क्योंकि वे सिनेमा में काम करने के सख्त खिलाफ थे। परिवार और समाज के विरोध के बावजूद, ज़ुबैदा ने अपने जज्बात और सपनों के लिए एक अलग पहचान बनाई। यही आत्मविश्वास और निडरता उनकी शख्सियत की सबसे खास बात थी, जो उन्हें भीड़ से अलग करती थी।

श्याम बेनेगल ने बनाई फिल्म, करिश्मा कपूर ने निभाया रोल

दरअसल, ज़ुबैदा बेगम की रहस्यमयी और उतारचढ़ाव से भरी जिंदगी खुद में किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं थी। शायद यही कारण था कि प्रतिष्ठित फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल ने उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म ज़ुबैदा वर्ष 2001 में बनाई। यह फिल्म न केवल श्याम बेनेगल की बहुचर्चित कृतियों मम्मो और सरदारी बेगम की अगली कड़ी मानी गई, बल्कि इसने राष्ट्रीय पुरस्कार भी अपने नाम किया।

इस फिल्म ने करिश्मा कपूर के करियर को भी एक नया मोड़ दिया। एक आधुनिक दौर की अभिनेत्री ने जब ब्लैक एंड व्हाइट युग की साहसी और संवेदनशील अभिनेत्री ज़ुबैदा की भूमिका निभाई, तो उन्होंने किरदार को परदे पर पूरी सच्चाई और गहराई के साथ उताराऔर दर्शकों व समीक्षकों से भरपूर सराहना पाई। फिल्म में जोधपुर के राजा हनवंत सिंह की भूमिका अभिनेता मनोज बाजपेई ने निभाई थी, जिन्होंने अपने प्रदर्शन से कहानी को और भी जीवंत बना दिया।

खालिद मोहम्मद ने लिखी थी फिल्म की पटकथा

इस फिल्म की सबसे खास बात यह थी कि इसकी पटकथा किसी और ने नहीं, बल्कि ज़ुबैदा बेगम के असल जीवन पुत्रप्रसिद्ध लेखक और फिल्म निर्माता खालिद मोहम्मद ने खुद लिखी थी। जब एक बेटा अपनी मां की कहानी कहता है, तो उसमें सच्चाई की गुंजाइश कहीं अधिक होती है और विवाद या कल्पना की कम। फिल्म में ज़ुबैदा की जिंदगी और उस रहस्यमयी विमान हादसे को बेहद विस्तार और गहराई से दिखाया गया है।

ज़ुबैदा बेगम का जन्म मुंबई के एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता, कासिम भाई मेहता, एक व्यापारी थे, जबकि मां फ़ैज़ा बाई एक मशहूर गायिका थीं, जिनके सिनेमा जगत से अच्छे संबंध थे। ज़ुबैदा ने 1940 के दशक में ग्रुप डांस और कोरस में भाग लेना शुरू किया, लेकिन उनके पिता इस राह के सख्त खिलाफ थे। कई बार वे शूटिंग के सेट पर पहुंचकर काम रुकवा देते। जब ज़ुबैदा नहीं मानीं, तो उन्होंने जल्दबाज़ी में उसकी शादी करवा दी। इसी विवाह से उनका एक बेटा हुआजो आगे चलकर खालिद मोहम्मद बने, और बाद में उन्होंने अपनी मां की अधूरी कहानी को फिल्मी परदे पर जीवंत कर दिया।

जुबैदा बेगम अपने पहले पति से खुश नहीं रहती थी

ज़ुबैदा बेगम और उनके पहले पति के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण थे। वह फिल्मों से जुड़ी रहना चाहती थीं, लेकिन उनके पति इसके खिलाफ थे। मतभेद इतने बढ़ गए कि आखिरकार दोनों ने तलाक ले लिया। इसी दौरान ज़ुबैदा की जिंदगी में जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह राठौर की एंट्री हुई। दोनों की मुलाकात एक शादी समारोह में हुई और यह कहानी 1947 से 1949 के बीच की मानी जाती है।

हनवंत सिंह पहले से कृष्णा कुमारी के साथ विवाहित थे और उनके तीन बच्चे भी थे। वहीं ज़ुबैदा भी एक बच्चे की मां थीं और तलाकशुदा थीं। बावजूद इसके, दोनों के बीच प्रेम गहराया और उन्होंने समाजिक और धार्मिक रुकावटों को दरकिनार कर विवाह कर लिया। ज़ुबैदा ने 1959 में हिंदू धर्म अपनाया और हनवंत सिंह से शादी की। फिल्म में कृष्णा कुमारी का किरदार रेखा ने निभाया है।

शादी के बाद ज़ुबैदा की ज़िंदगी का ज़िक्र कम मिलता है, लेकिन जो कुछ भी पता चलता है, उसे श्याम बेनेगल ने फिल्म में संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है। इस बीच, महाराजा हनवंत सिंह की राजनीति में दिलचस्पी बढ़ने लगी। उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी बनाई और चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू की।

एक दिन, जब राजा चुनाव प्रचार के लिए बाहर जा रहे थे, ज़ुबैदा भी उनके साथ जाने की जिद पर अड़ गईं। हालांकि राजा उन्हें साथ नहीं ले जाना चाहते थे, मगर ज़ुबैदा की जिद के आगे झुकना पड़ा। कहा जाता है कि राजा को खुद विमान उड़ाने का शौक था। लेकिन जिस सुबह वह हादसा हुआ, उससे एक रात पहले वे पूरी नींद नहीं ले सके थेऔर वही लम्हा ज़िंदगी का आखिरी साबित हुआ।

चुनाव प्रचार में जाने के दौरान हुआ था विमान हादसा

26 जनवरी, 1952 की सुबह एक भयानक त्रासदी लेकर आई। राजा हनवंत सिंह राठौर और ज़ुबैदा जिस विमान से रवाना हुए थे, वह राजस्थान के गोडवार क्षेत्र में क्रैश हो गया। इस दर्दनाक हादसे में दोनों की मौत हो गई। इस ऐतिहासिक घटना को निर्देशक श्याम बेनेगल ने बेहद संवेदनशीलता और गहराई से अपनी फिल्म ज़ुबैदा में दर्शाया, जो आज एक कल्ट क्लासिक के रूप में पहचानी जाती है।

फिल्म में यह दिखाया गया है कि ज़ुबैदा को अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करते हुए कई बार अपनों की नाराजगी और सामाजिक बंधनों का सामना करना पड़ा। मनोज बाजपेई ने राजा हनवंत सिंह के किरदार को बखूबी निभाया है, जबकि उनकी दो पत्नियों के रूप में करिश्मा कपूर (ज़ुबैदा) और रेखा (कृष्णा कुमारी) ने अपनेअपने किरदारों में गहरी संवेदना और भावनात्मक परिपक्वता दिखाई है।

श्याम बेनेगल की प्रस्तुति ने इन जटिल संबंधों और परिस्थितियों को न सिर्फ बारीकी से छुआ, बल्कि उन्हें भावनात्मक गहराई भी दी, जो इस फिल्म को खास बनाती है।

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