कोल्हापुरी चप्पल: देसी विरासत से इंटरनेशनल फैशन आइकन बनने तक का सफर कोल्हापुरी चप्पलें केवल एक पारंपरिक फुटवियर नहीं हैं, बल्कि भारतीय कारीगरी और सांस्कृतिक धरोहर की मिसाल हैं। कभी आमजन के बीच लोकप्रिय यह चप्पल अब ग्लोबल फैशन की दुनिया में अपनी खास जगह बना चुकी है। आइए जानते हैं कि कोल्हापुरी चप्पल की शुरुआत कहां से हुई और यह कैसे इंटरनेशनल फैशन का हिस्सा बन गई।
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हाल ही में सोशल मीडिया पर एक कोल्हापुरी चप्पल की तस्वीर वायरल हुई, जिसकी कीमत 1 लाख रुपये से भी ज्यादा बताई जा रही है। यह जानकर कई लोग हैरान रह गए कि साधारण–सी दिखने वाली इस पारंपरिक चप्पल की कीमत इतनी ज्यादा कैसे हो सकती है? लेकिन अगर आप इसकी बारीक कारीगरी और इतिहास को समझेंगे, तो जान जाएंगे कि यह केवल एक चप्पल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पहचान है।
जहां पहले कोल्हापुरी चप्पलें आम लोगों की जरूरत थीं, वहीं आज नामी फैशन ब्रांड्स और डिजाइनर्स इन्हें अपने प्रीमियम कलेक्शन में शामिल कर रहे हैं। इंटरनेशनल लग्ज़री ब्रांड Prada ने भी कोल्हापुरी स्टाइल की चप्पल लॉन्च की है, जिसकी कीमत करीब ₹1.20 लाख है।
तो आइए जानें कोल्हापुरी चप्पल की खासियतें, इसका ऐतिहासिक सफर और कैसे इसने देसी पहचान से निकलकर ग्लोबल फैशन में अपना नाम बनाया।
कोल्हापुरी चप्पल: कोल्हापुरी चप्पल की शुरुआत कहां से हुई?
कोल्हापुरी चप्पल की उत्पत्ति महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले से मानी जाती है। कहा जाता है कि इसका इतिहास 13वीं शताब्दी तक जाता है। शुरूआती दौर में यह चप्पलें मुख्यतः मराठा सैनिकों और ग्रामीण लोगों द्वारा पहनी जाती थीं। इनकी डिजाइन इस तरह बनाई जाती थी कि गर्मियों में पैरों को ठंडक मिले और बरसात के मौसम में भी ये टिकाऊ बनी रहें।
कोल्हापुरी चप्पल की खासियत
कोल्हापुरी चप्पलों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें पूरी तरह हस्तनिर्मित तरीके से बनाया जाता है। एक जोड़ी चप्पल को तैयार करने में लगभग 2 से 4 दिन तक का समय लग सकता है। इसकी सिलाई, कटिंग और डिजाइन—हर प्रक्रिया कारीगर अपने हाथों से करते हैं, जिसमें किसी भी मशीन का इस्तेमाल नहीं होता। यही वजह है कि हर जोड़ी चप्पल अपने आप में बिल्कुल खास और अलग होती है।
ये चप्पलें न सिर्फ पारंपरिक खूबसूरती से भरपूर होती हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल मानी जाती हैं। इनका निर्माण पूरी तरह इको–फ्रेंडली विधियों से होता है, जिससे न तो अधिक कचरा उत्पन्न होता है और न ही पर्यावरण पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
किस तरह बनाई जाती है कोल्हापुरी चप्पल?
इन चप्पलों को खास किस्म के असली चमड़े से तैयार किया जाता है, जो न केवल बेहद टिकाऊ होता है बल्कि पहनने में भी आरामदायक रहता है। चमड़े को पहले कई घंटों तक पानी और प्राकृतिक तेलों में भिगोकर मुलायम बनाया जाता है। इसके बाद उस पर डिज़ाइन की जाती है और पूरी सिलाई हाथों से की जाती है। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के सिंथेटिक या रासायनिक तत्वों का इस्तेमाल नहीं होता।
देसी चप्पल कैसे बनीं फैशन स्टेटमेंट?
पिछले कुछ वर्षों में कोल्हापुरी चप्पलें देश के नामी फैशन डिजाइनरों के कलेक्शन्स का हिस्सा बन चुकी हैं। बॉलीवुड सितारों से लेकर इंटरनेशनल मॉडल्स तक, सभी इन्हें स्टाइलिश आउटफिट्स के साथ पहनते नजर आ रहे हैं। खासकर विदेशों में भारतीय हस्तनिर्मित फुटवियर की मांग तेजी से बढ़ी है। इसी ट्रेंड को देखते हुए इटली के प्रसिद्ध लग्जरी ब्रांड Prada ने हाल ही में कोल्हापुरी चप्पल का एक वर्जन लॉन्च किया है, जिसकी कीमत 1 लाख 20 हजार रुपये रखी गई है।