छठ पूजा इको फ्रेंडली फेस्टिवल : कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का मुख्य अनुष्ठान किया जाता है। इससे पहले नहाय–खाय और खरना की विधि पूरी की जाती है। यह पर्व आस्था, धर्म और प्रकृति का अद्भुत संगम है। भारतीय संस्कृति का प्रतीक यह छठ पर्व न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि एक इको–फ्रेंडली फेस्टिवल भी है, जिसका गहरा संबंध सेहत से भी जुड़ा है। इस लेख में हम जानेंगे ऐसे ही 5 अहम बिंदु।
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छठ महापर्व चार दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें भक्त लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं। यह पर्व न सिर्फ भारत के कई राज्यों—बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश—में धूमधाम से मनाया जाता है, बल्कि विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय भी इसे पूरे श्रद्धा भाव से मनाते हैं। आस्था से भरा यह पर्व केवल धार्मिक परंपराओं का पालन नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और आभार व्यक्त करने का एक माध्यम भी है।
छठ पर्व के दौरान सूर्यदेव और छठी मईया की पूजा की जाती है। व्रती प्रातःकालीन सूर्य को अर्घ्य देते हैं और शाम को अस्त होते सूर्य की भी आराधना करते हैं। इस पर्व में संतान की लंबी आयु, परिवार की सुख–समृद्धि और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा की कामना की जाती है। छठ की खासियत यह है कि यह न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभदायक भी है।
छठ पूजा इको फ्रेंडली फेस्टिवल : साफ–सफाई का खास ध्यान
छठ पूजा के दौरान शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। अर्घ्य देने की परंपरा पानी में खड़े होकर की जाती है, इसलिए तालाबों, नदियों और उनके आस–पास के क्षेत्रों की सफाई पहले से ही की जाती है। यह प्रथा न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभदायक है।
पूजा में यूज होने वाला सामान
छठ पर्व के इको–फ्रेंडली होने का दूसरा पहलू यह है कि पूजा के दौरान उपयोग में लाए जाने वाले सभी सामान पूरी तरह प्राकृतिक होते हैं। इस अवसर पर किसी भी कृत्रिम या प्लास्टिक वस्तु का प्रयोग नहीं किया जाता। श्रद्धालु बांस की डलिया या सूप में प्रसाद और पूजन सामग्री लेकर जाते हैं। यदि ये वस्तुएं घाट पर रह भी जाएं, तो ये आसानी से जैविक रूप से नष्ट हो जाती हैं, जिससे पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता।
सूर्यदेव की उपासना
छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्यदेव की आराधना करना है, यानी यह पर्व पूर्णतः प्रकृति को समर्पित है। वास्तव में, मनुष्य ही नहीं बल्कि पशु–पक्षी, कीट–पतंगे और पेड़–पौधे तक सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सौर ऊर्जा पर निर्भर रहते हैं। आज के समय में सौर ऊर्जा का उपयोग बिजली उत्पादन से लेकर अनेक दैनिक जरूरतों को पूरा करने में किया जा रहा है।
सीजनल चीजें होती हैं अर्पित
छठ पूजा की सबसे खास बात यह है कि इसमें मौसमी और प्राकृतिक वस्तुओं का ही अर्घ्य में उपयोग किया जाता है। जैसे—नारियल, मूली, सेब, केला, गन्ना, नींबू, अनानास, कद्दू, पेठा, लौकी, पान के पत्ते, सुथनी और शकरकंद आदि। ये सभी सामग्री सीधे प्रकृति से प्राप्त होती हैं, जिससे यह पर्व पूरी तरह प्रकृति–संवर्धन का प्रतीक बन जाता है।
मिट्टी के दीपक
छठ पूजा में पारंपरिक रूप से मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं, जो बाद में टूटकर स्वाभाविक रूप से मिट्टी में मिल जाते हैं और भूमि को कोई हानि नहीं पहुँचाते। ये दीपक देसी घी या सरसों के तेल से प्रज्वलित किए जाते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता, बल्कि वातावरण अधिक शुद्ध और पवित्र हो जाता है।
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कैसे है सेहत से कनेक्शन?
वेदों में उल्लेख किया गया है कि ब्रह्म मुहूर्त में जागना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। छठ पूजा में उषा काल के दौरान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद माना जाता है। इसके साथ ही, इस पूजा में तैयार किया जाने वाला प्रसाद पोषक तत्वों से भरपूर होता है। सुबह और शाम घाटों पर पूजा करने से व्यक्ति प्रकृति के निकट आता है, जिससे न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।