Eid ul-Adha 2025 : Eid ul-Adha 2025: साल में कितनी ईद होती हैं? जानिए उनके नाम और महत्व अधिकतर लोग यही जानते हैं कि साल में सिर्फ दो ईद आती हैं—एक मीठी ईद और दूसरी बकरीद। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में साल भर में कुल कितनी ईद मनाई जाती हैं और उनके नाम क्या हैं? 7 जून 2025 को पूरे देश में ईद–उल–अज़हा यानी बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा, जिसे इस्लाम धर्म में “कुर्बानी की ईद” के नाम से जाना जाता है।
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जब भी ईद की बात होती है, तो आमतौर पर दो ही नाम सामने आते हैं—ईद–उल–फितर और ईद–उल–अज़हा। लेकिन कई लोग यह नहीं जानते कि साल में एक और ईद भी मनाई जाती है, जिसे लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति बन जाती है।
इस लेख में हम आपको बताएंगे कि साल में कुल कितनी ईद होती हैं, उनके क्या नाम हैं और किस अवसर पर उन्हें मनाया जाता है। आइए सबसे पहले जानते हैं मीठी ईद यानी ईद–उल–फितर के बारे में।
Eid ul-Adha 2025 : ईद–उल–फितर
ईद–उल–फितर: क्यों कहलाती है मीठी ईद और कैसे मनाया जाता है ये पर्व ईद–उल–फितर को आमतौर पर मीठी ईद कहा जाता है, और कई लोग इसे “सेवइयां वाली ईद” भी कहते हैं। इसकी खास पहचान है इस दिन पकाई जाने वाली पारंपरिक मिठाई सेवइयां, जो हर घर में बनाई जाती है। यह त्योहार रमजान के पवित्र महीने के समाप्त होने पर मनाया जाता है।
रमजान के पूरे महीने मुस्लिम समुदाय के लोग रोज़ा रखते हैं, नियमित नमाज़ पढ़ते हैं, कुरान की तिलावत करते हैं और ज़कात यानी इस्लामी चैरिटी करते हैं। इन सभी इबादतों के बाद ईद–उल–फितर को अल्लाह की तरफ से इनाम के रूप में देखा जाता है।
ईद की तारीख चांद दिखने पर निर्भर करती है, इसलिए यह हर साल अलग दिन पर आती है। रमजान के आखिरी रोज़े के बाद अगली सुबह मुस्लिम समुदाय विशेष नमाज़ अदा करता है, ज़कात देता है और सेवइयों से एक–दूसरे का मुंह मीठा कराता है। लोग गले मिलते हैं, एक–दूसरे के घर जाकर शुभकामनाएं देते हैं—इसी खुशी और भाईचारे के जश्न का नाम है ईद–उल–फितर।
ईद–उल–अज़हा
ईद–उल–अज़हा: क्यों कहते हैं इसे बकरीद और क्या है इसके पीछे की कहानी अब बात करते हैं ईद–उल–अज़हा की, जिसे आमतौर पर बकरीद के नाम से जाना जाता है। यह इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने धूल हिज्जा (ज़िल–हिज्ज) की 10वीं तारीख को मनाई जाती है। इसे ईद–उल–जुहा भी कहा जाता है और इस दिन कुर्बानी का विशेष महत्व होता है।
इस दिन मुस्लिम समुदाय हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की आज़माइश और उनके अल्लाह पर अटूट विश्वास को याद करता है। इस्लामी मान्यता के अनुसार, अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से अपने बेटे हज़रत इस्माइल की कुर्बानी की मांग की थी ताकि उनकी भक्ति की परीक्षा ली जा सके। इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की आज्ञा मानते हुए कुर्बानी के लिए खुद को तैयार किया, लेकिन अल्लाह ने उनकी सच्ची नीयत देखकर बेटे की जगह एक दुम्बे (बकरी की प्रजाति) की कुर्बानी करवा दी।
हर साल ईद–उल–अज़हा इसी कुर्बानी और समर्पण की भावना की याद में मनाई जाती है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि अल्लाह के आदेशों के प्रति आस्था और समर्पण ही सबसे बड़ी इबादत है।
ईद–मिलाद–उन–नबी
ईईद मिलाद–उन–नबी: हज़रत मुहम्मद के जन्म और शिक्षाओं की याद में मनाया जाने वाला खास दिन ईद मिलाद–उन–नबी का दिन इस्लाम के अंतिम पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के जन्म और उनकी विदाई—दोनों को याद करने का दिन माना जाता है। यह पर्व रबी अल–अव्वल महीने की 12वीं तारीख को मनाया जाता है और इसे बारह रबीउल–अव्वल या बारावफात के नाम से भी जाना जाता है।
इस खास अवसर पर दुनियाभर के मुसलमान पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं, सच्चाई और अमन के पैगाम को याद करते हैं। मस्जिदों में विशेष नमाज़ अदा की जाती है, कुरआन की तिलावत होती है, और दरूद शरीफ का पाठ बड़े आदर के साथ किया जाता है।
इस दिन गरीबों की मदद को भी बहुत महत्व दिया जाता है, इसलिए लोग सदका (दान) और खैरात करते हैं। यह दिन न केवल आध्यात्मिक शांति का प्रतीक है, बल्कि यह हमें पैगंबर मुहम्मद की रहमत, सहानुभूति और इंसानियत की राह पर चलने की प्रेरणा भी देता है।
इस ईद पर कन्फ्यूजन क्यों ?
ईद मिलाद–उन–नबी: क्यों है इस पर्व को लेकर मुस्लिम समुदाय में मतभेद दुनियाभर के मुसलमान हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के जन्म को एक पवित्र अवसर मानते हैं, लेकिन इसे मनाने का तरीका और भावनाएं अलग–अलग होती हैं। यही वजह है कि ईद मिलाद–उन–नबी को लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, हज़रत मोहम्मद का निधन भी इसी दिन — 12 रबीउल अव्वल — को हुआ था। इसी कारण कई लोग इसे बारह वफात यानी विदाई का दिन मानते हैं और इसे उत्सव के रूप में नहीं मनाते। उनका तर्क है कि जब पैगंबर का इंतकाल इसी दिन हुआ था, तो इसे खुशियों के रूप में कैसे मनाया जा सकता है?
दूसरी ओर, कई मुसलमान इस दिन को पैगंबर के जन्मदिवस के रूप में श्रद्धा और सम्मान से मनाते हैं, जिसमें वे उनकी शिक्षाओं और अमन के संदेश को याद करते हैं।
इसी मतभेद की वजह से जहाँ ईद–उल–फितर और ईद–उल–अज़हा पूरी मुस्लिम दुनिया मिलकर मनाती है, वहीं ईद मिलाद–उन–नबी पर समुदाय के भीतर विचारों का विभाजन देखने को मिलता है।