स्ट्रेस और डिप्रेशन में फर्क : अक्सर लोगों को हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की सलाह दी जाती है, जिसमें स्ट्रेस को कम करना भी बेहद ज़रूरी होता है। आज के दौर में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। कई बार लोग स्ट्रेस को ही डिप्रेशन समझने लगते हैं, जबकि दोनों में बड़ा फर्क होता है। आइए जानते हैं एक्सपर्ट से कि आखिर स्ट्रेस और डिप्रेशन में क्या अंतर है।
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आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हर कोई व्यस्त है। ऐसे में ऑफिस के प्रेशर, घरेलू जिम्मेदारियों और रिलेशनशिप्स की उलझनों की वजह से स्ट्रेस होना सामान्य है। लेकिन जब यही तनाव रोजाना की आदत बन जाए, तो यह आपकी मेंटल हेल्थ पर गंभीर असर डाल सकता है।
कई बार लोग लंबे समय तक स्ट्रेस में रहने पर जब खुद में व्यवहार या शारीरिक बदलाव महसूस करते हैं, तो मान लेते हैं कि वे डिप्रेशन में हैं। मूड स्विंग्स, ओवरथिंकिंग और चिड़चिड़ापन जैसी स्थितियों को भी अक्सर डिप्रेशन समझ लिया जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि स्ट्रेस और डिप्रेशन दोनों अलग मानसिक अवस्थाएं हैं। चलिए जानते हैं एक्सपर्ट की राय कि इनमें फर्क क्या है और कैसे पहचानें।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेस (IHBAS) के प्रोफेसर डॉ. राजिंदर बताते हैं कि हर इंसान को जीवन में कभी न कभी तनाव (स्ट्रेस) जरूर होता है। जैसे ट्रैफिक जाम में फंसने से लेकर आर्थिक परेशानियों तक, कोई भी स्थिति तनाव का कारण बन सकती है। स्ट्रेस दो तरह का होता है – पॉजिटिव और नेगेटिव। जहां कभी–कभी स्ट्रेस हमें काम करने के लिए प्रेरित करता है, वहीं लंबे समय तक बना रहने वाला स्ट्रेस मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है। इससे दिल, दिमाग और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
वहीं डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है, जो माइल्ड से लेकर सीवियर लेवल तक हो सकती है। डिप्रेशन के लक्षणों में किसी भी काम में रुचि न होना, भूख न लगना, नींद की कमी, लगातार गिल्ट फील करना और किसी भी काम में मन न लगना शामिल हैं। अगर ये लक्षण लगातार दो हफ्तों से ज्यादा समय तक बने रहें, तो यह डिप्रेशन की गंभीर स्थिति हो सकती है, जिसका इलाज जरूरी है।
स्ट्रेस और डिप्रेशन में क्या अंतर है?
स्ट्रेस कई बार पर्यावरण से जुड़ा या फिर प्रोडक्टिव भी हो सकता है। कुछ स्थितियों में तनाव हमारे लिए मददगार साबित होता है क्योंकि यह हमें किसी मुश्किल परिस्थिति से बाहर निकलने की प्रेरणा देता है। हालांकि, जब तनाव जरूरत से ज्यादा हो जाता है, तो यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और कई बीमारियों को जन्म दे सकता है।
स्ट्रेस दो प्रकार का होता है – गुड स्ट्रेस और बैड स्ट्रेस। गुड स्ट्रेस हमें सतर्क रखता है और किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में शांत और सोच–समझकर काम करने में मदद करता है। यह सीमित मात्रा में फायदेमंद होता है। वहीं बैड स्ट्रेस में व्यक्ति घबराकर या जल्दबाजी में निर्णय लेने लगता है, जिससे उसकी मानसिक स्थिति और शारीरिक सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है।
स्ट्रेस किसी भी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति या काम के दबाव में आ सकता है, और आमतौर पर स्थिति के बदलने के साथ कम भी हो जाता है। लेकिन अगर व्यक्ति लंबे समय तक तनाव में रहता है, तो यह गंभीर रूप से नुकसानदायक हो सकता है।
वहीं डिप्रेशन एक मेडिकल कंडीशन है, जो सिर्फ स्ट्रेस से अलग है। यह मानसिक बीमारी इलाज योग्य है, जिसे दवाओं और साइकोथेरेपी के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है।