डॉक्टर दूसरा भगवान कहा जाता है, क्योंकि वो कई जिंदगियों को बचाते हैं. बीमारियां होना तो लोगों की जिंदगी का हिस्सा है और ऐसे में सबसे पहले हम डॉक्टर के पास दौड़ते हैं, लेकिन जब भी आप किसी छोटे क्लीनिक पर ही क्यों न जाएं, डॉक्टर आपको एक वाइट लॉन्ग कोट पहने दिखेंगे, जानिए इसके पीछे का लॉजिक.
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हम सभी ये जानते हैं कि बीमार होने पर सही समय पर डॉक्टर के पास जाना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि एक ऐसी जगह है जहां हम वापस स्वस्थ होकर एक खुशहाल जीवन जी पाएंगे. वहीं जब कहीं आपदा आती है, कोई दुर्घटना होती है या फिर संक्रमित कर देने वाली महामारी ही क्यों न हो. डॉक्टर खुद की परवाह किए बिना दिन रात मरीजों की सेवा में लगे रहते हैं और अच्छी सेहत को बढ़ावा देकर समाज अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. किसी छोटी बीमारी का सामान्य चिकित्सक बनना हो या फिर सर्जन और शरीर के किसी भी अंग से जुड़ा स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनने के लिए कई साल की कड़ी मेहनत करनी होती है और खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देना पड़ता है. फिलहाल हम इस स्टोरी में बात करेंगे कि आखिर क्यों डॉक्टर या फिर नर्स आदि मेडिकल लाइन में जो मरीजों की देखभाल करते हैं, वो लोग सफेद कोट क्यों पहने होते हैं.
कई साल की प्रैक्टिस करने के बाद भी लाइफाटाइम डॉक्टर्स खुद को बेहतर बनाने पर काम करते हैं, ताकि वह चिकित्सा के क्षेत्र में कुछ न कुछ नया कर सकें और गंभीर बीमारियों से लोगों को बचाकर नई लाइफ दे सकें, इसलिए हमे डॉक्टर्स का शुक्रिया तो अदा करना ही चाहिए. 1 जुलाई को हर साल डॉक्टर्स डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. इस मौके पर जान लेते हैं कि क्यों पहनते हैं डॉक्टर सफेद कोट.
वाइट कोट समारोह की शुरुआत
जब कोई छात्र डॉक्टर की पढ़ाई पूरी करता है, तो एक विशेष समारोह के दौरान उसे सफेद कोट पहनाया जाता है, जो इस बात का प्रतीक होता है कि अब वह कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के लिए तैयार है। इस परंपरा को ‘वाइट कोट सेरेमनी’ कहा जाता है। इसकी शुरुआत डॉक्टर अर्नोल्ड पी. गोल्ड, एम.डी. ने की थी और इसे ‘क्लोकिंग‘ की एक औपचारिक प्रक्रिया माना जाता है।
पहले काले कपड़े पहनते थे डॉक्टर
एएमए (अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन) जर्नल ऑफ एथिक्स के अनुसार, पिछले एक दशक से भी अधिक समय से सफेद कोट डॉक्टरों की पहचान का अहम हिस्सा बना हुआ है। यह दृश्य अब इतना आम हो चुका है कि लोग अस्पतालों और क्लीनिकों में सफेद कपड़े पहने व्यक्ति को देखते ही मान लेते हैं कि वही उनका इलाज करेगा। हालांकि, एक समय था जब डॉक्टर सफेद नहीं बल्कि काले कपड़े पहना करते थे। इसका कारण यह था कि उस दौर में डॉक्टर से मिलना एक गंभीर मामला माना जाता था और काला रंग गंभीरता और गहराई का प्रतीक था। उस समय चिकित्सा क्षेत्र उतना विकसित नहीं था, और लोग डॉक्टर के पास जाना केवल आखिरी विकल्प के रूप में देखते थे।
कब शुरू हुआ वाइट कोट का प्रचलन
एएमए जर्नल ऑफ एथिक्स में प्रकाशित जानकारी के अनुसार, सफेद कोट पहनने की परंपरा 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में शुरू हुई थी। जब चिकित्सा विज्ञान ने ठोस वैज्ञानिक आधार पर काम करना शुरू किया, तब नर्सों की यूनिफॉर्म में बदलाव आया और सफेद रंग को शुद्धता और विश्वास का प्रतीक माना जाने लगा। 20वीं सदी में सफेद कोट डॉक्टरों की प्रतिष्ठा और चिकित्सा क्षेत्र में उनके अधिकार का प्रतीक बन गया। इस दौर में चिकित्सा विज्ञान में हुई प्रगति ने मरीजों और डॉक्टरों के रिश्ते को और मजबूत किया। इसी समय, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एंटीबायोटिक दवाओं की खोज हुई, जिसे उस समय चिकित्सा क्षेत्र की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना गया।
ये डॉक्टर नहीं पहनते वाइट कोट
जब मरीज अस्पताल में आते हैं तो सफेद कोट पहने लोगों को देखकर उन्हें यह विश्वास हो जाता है कि यही वे विशेषज्ञ हैं जो उनकी सेहत से जुड़ी हर जानकारी रखते होंगे। हालांकि, आज भी कुछ डॉक्टर ऐसे हैं जो सफेद कोट नहीं पहनते। उदाहरण के तौर पर, अधिकतर बाल रोग विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक वाइट कोट पहनने से परहेज करते हैं। डेनमार्क और इंग्लैंड जैसे देशों में भी इसे अनिवार्य नहीं माना जाता, बल्कि यह एक वैकल्पिक परंपरा के रूप में देखा जाता है।