पहलगाम आतंकी हमला : पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत को वैश्विक स्तर पर जबरदस्त समर्थन मिला है। अमेरिका, फ्रांस, इज़रायल और रूस जैसे बड़े देशों ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को न केवल सही ठहराया है, बल्कि आतंक के खिलाफ संभावित कार्रवाई का खुला समर्थन भी दिया है। पाकिस्तान कीइन्कार की रणनीतिसे अब दुनिया पूरी तरह ऊब चुकी है, और इस बार कई मुस्लिम देशों ने भी भारत का साथ दिया हैजो अपने आप में एक बड़ा बदलाव है।

यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की स्थिति अब उसकी क्रिकेट टीम से भी खराब हो गई है, जहां भारत की जीत लगभग तय मानी जा रही है।

पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले ने भारत को एक बार फिर झकझोरा है, लेकिन इस बार अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया अभूतपूर्व है। पहले सिर्फ सहानुभूति जताने वाले देश अब भारत के साथ मजबूती से खड़े नजर आ रहे हैंऔर यह समर्थन केवल शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि ठोस कूटनीतिक और रणनीतिक संकेत भी दे रहा है।

1. दुनिया PAK की नकारने की नीति से थक चुकी है

पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान हर आतंकी घटना से खुद को अलग बताता रहा है, लेकिन इस बार उसकी सफाई पर दुनिया विश्वास करने को तैयार नहीं है। ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान के असली चेहरे की झलक मिल चुकी है।

पहलगाम जैसे योजनाबद्ध हमलों के पीछे जिन आतंकी संगठनों का हाथ है, उनकी जड़ें पाकिस्तान में कितनी गहरी हैं, यह अब केवल भारत ही नहीं, बल्कि पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियाँ भी मान रही हैं।

2. मुस्लिम देश भी भारत के साथ

इस बार सऊदी अरब, यूएई, मिस्र और यहां तक कि इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों द्वारा भारत के रुख को उचित ठहराया जाना इस बात का संकेत है कि आतंकवाद के मुद्दे पर अब पारंपरिक इस्लामिक एकजुटता की नीति कमजोर पड़ रही है। भले ही इन देशों ने पाकिस्तान का नाम स्पष्ट रूप से न लिया हो, लेकिन उनके बयानों में भारत के संयम की सराहना और आतंक के खिलाफ जवाबी कार्रवाई को आवश्यक बताना, अपने आप में एक सशक्त और साफ संदेश देता है।

3. चीन इस बार चुप है मजबूरी में

पाकिस्तान का लंबे समय से रणनीतिक सहयोगी रहा चीन भी इस बार खुलकर उसके पक्ष में नहीं आया, बल्कि भारत में हुए आतंकी हमले की निंदा की है। चीन समझता है कि इस समय पाकिस्तान का समर्थन करना अपनी ही रणनीतिक स्थिति को नुकसान पहुंचाने जैसा होगा।

इसका एक बड़ा कारण अमेरिका और चीन के बीच चल रहा तीव्र तनाव है। अगर चीन इस वक्त पाकिस्तान के साथ खड़ा होता है, तो भारत का अमेरिका के करीब जाना तय है। चीन अच्छी तरह जानता है कि अगर भारत पूरी तरह अमेरिका की इंडोपैसिफिक रणनीति का हिस्सा बन गया, तो उसे इस क्षेत्र में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

4. UN को छोड़कर कोई संयम की अपील नहीं कर रहा

इस आतंकी हमले के बाद, भारत की संभावित जवाबी कार्रवाई को लेकर संयम की अपील केवल संयुक्त राष्ट्र तक ही सीमित रही। बाकी प्रमुख देशों ने भारत पर कोई दबाव नहीं बनाया। यह एक असाधारण स्थिति है, जब एक लोकतांत्रिक देश को अपने ऊपर हुए हमले का ठोस और सशक्त जवाब देने की खुली अनुमति मिल रही है।

5. भारत अब निर्णायक मोड़ पर है

भारत के लिए यह समय केवल जवाबी कार्रवाई का नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर अपने कूटनीतिक प्रभाव को स्थापित करने का भी संकेत है। जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत की स्थिति को नैतिक और रणनीतिक रूप से उचित ठहरा रहा है, तब यह सिर्फ आतंकवादी हमले का प्रतिकार नहीं होगाबल्कि यह उस नए भारत की पहचान बनेगा जो अब आतंकवाद को सिर्फ झेलेगा नहीं, बल्कि हर स्तर पर उसका माकूल जवाब देगा, चाहे वह कूटनीतिक हो या सैन्य।

6. पाकिस्तान के पास समर्थन, नैतिक आधार

पाकिस्तान एक बार फिर चीन की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है, लेकिन इस बार उसका तथाकथितऑल वेदर फ्रेंडभी पीछे हटता दिख रहा है। भारत को जो वैश्विक समर्थन इस बार मिल रहा है, वह साफ दर्शाता है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग अब केवल भारत की नहीं रही।

पहाड़ों की घाटी में गूंजती गोलियों की आवाज़ अब सिर्फ दुख और शोक की नहीं, बल्कि एक बड़े बदलाव की आहट है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब पाकिस्तानी आतंकवाद से उकता चुका है, और इस बार भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ा नजर आ रहा है।

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