सुचित्रा सेन भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपने करियर में हिंदी के साथ-साथ बंगाली फिल्मों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका कहा जाता है कि वह अपने नियमों के प्रति बहुत प्रतिष्ठित थीं। उन्होंने अपने नियमों के लिए ही भारत के सर्वोच्च फिल्मी सम्मान, दादा साहब फाल्के पुरस्कार स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
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फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे कलाकार हैं, जो अपनी शर्तों पर काम करना पसंद करते हैं, और कई ऐसे कलाकार आज भी हैं। उनके लिए, उनके उसूल सबसे पहले आते हैं, और फिर बाकी की चीजें। सुचित्रा सेन भी एक ऐसी ही अभिनेत्री रही हैं। उन्होंने अपने निष्ठावानीति के लिए एक बार भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा पुरस्कार, दादा साहब फाल्के अवार्ड, लेने से भी इनकार किया था। सुचित्रा की बर्थडे एनिवर्सरी 6 अप्रैल को है, और इस अवसर पर, यह दर्शाया जाएगा कि उन्होंने इस पुरस्कार से क्यों मना किया था।
सुचित्रा सेन का जन्म ब्रिटिश इंडिया के पबना (अब बांग्लादेश में) में हुआ था। वहीं से उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरी की थी, और केवल 15 साल की उम्र में ही उनकी शादी दिबानाथ सेन से हो गई थी। फिल्मों में अपना करियर बनाने की उनकी इच्छा थी। शादी के बाद, उन्होंने इस सपने को पूरा किया, जिसमें उनके पति और ससुर ने भी उनका साथ दिया। लगभग 1952 के आसपास, एक बंगाली फिल्म ‘शेश कोठे’ बन रही थी। उसी फिल्म के माध्यम से उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। हालांकि, यह फिल्म कभी रिलीज नहीं हो सकी। उन्होंने पहली बार ‘चौत्तोर’ नाम की फिल्म में अपना डेब्यू किया। फिर, फिल्मों के प्रकाशन के साथ, वह अभिनय की दुनिया में उच्चारण करती रहीं, ढेरों बंगाली और हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय का प्रदर्शन करती रहीं।
सुचित्रा सेन की पहली हिंदी फिल्म
बिमल रॉय के निर्देशन में 1955 में ‘देवदास’ नामक फिल्म रिलीज हुई थी, जिसमें दिलीप कुमार मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म के माध्यम से सुचित्रा ने हिंदी सिनेमा में अपना डेब्यू किया, एक महत्वपूर्ण किरदार निभाकर। हालांकि वे एक बड़ी फिल्म के साथ बॉलीवुड में प्रवेश कर चुकी थीं, लेकिन उन्होंने अपने करियर के समय में केवल छह हिंदी फिल्मों में ही काम किया। उन दिनों, लगभग हर फिल्मकार उन्हें अपनी फिल्मों में कास्ट करना चाहता था, लेकिन वे केवल उन फिल्मों को ही स्वीकार करतीं जिन्हें वास्तव में पसंद करतीं थीं। इसी कारण उन्होंने हिंदी सिनेमा में कुल मिलाकर कुछ ही फिल्मों में काम किया, पर उनकी शानदार अभिनय की गहरी छाप लोगों के दिलों पर रही।
दादा साहब फाल्के अवॉर्ड लेने से कर दिया था इनकार
उनके योगदान की प्रशंसा के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। 1963 में ‘सात पाके बांधा’ नामक एक बंगाली फिल्म रिलीज हुई थी, जिसके लिए उन्हें रूस के मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘बेस्ट एक्ट्रेस’ का अवॉर्ड मिला था। हालांकि, 2005 में जब उन्हें भारत का सबसे बड़ा फिल्मी सम्मान, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, दिया जा रहा था, तो उन्होंने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने एक समय के बाद सिनेमा से संन्यास लिया था। उन्होंने खुद से वादा किया था कि वे अब लोगों के सामने कभी नहीं आएंगी, अर्थात् पब्लिक अपीयरेंस से बचेंगी। उन्होंने उसी वादे के लिए अवॉर्ड नहीं लिया।
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वास्तव में, वह कोलकाता में निवास करती थीं और उन्हें अवॉर्ड लेने के लिए दिल्ली जाना पड़ता। अगर उन्होंने ऐसा किया होता, तो उनका वादा टूट जाता। हालांकि, 2014 में सुचित्रा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। रिपोर्ट्स में उनकी मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया गया था। वे शायद इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन लोग उन्हें उनके नैतिक मूल्यों और शानदार अभिनय के लिए सदैव याद करेंगे।