केवल आत्म-हित जीवन बिताना जीने की सुंदर शैली नहीं है। जीवन-यात्रा को अपनी ही परिधि तक सीमित रखने में जीवन का आनंद कहाँ? ‘मैं और मेरा’ के दृष्टिकोण से जीवन जीना व्यर्थ है? स्वार्थभय जीवन को जीवन की संज्ञा नहीं दी जा सकती।
भविष्य को सुखमय बनाने के लिए धन चाहिए। कारण, धन ही सब कार्यों और सफलताओं का माध्यम है। नियमित जीवन में धन प्राप्ति कैसे हो? इसके लिए नीतिवान् चाणक्य का कथन है- ‘एक-एक बिन्दु से जैसे धीरे-धीरे घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार धन का भी थोड़ा-थोड़ा संचय करने से विशाल संग्रह हो जाता है।’
यदि आपके पास पैसा नहीं होगा तो आने वाले कल के अच्छे और बुरे अवसरों पर आप दूसरों का मुँह ताकते रह जाएंगे। किस्मत को कोसेंगे। इधर-उधर से कर्ज उठाने के लिए दस के आगे नाक रगड़ेंगे। अपमानित होंगे। ब्याज का बोझ सिर पर उठाएँगे। मूल और सूद चुकाने के लिए विवशतावंश घर के बजट में कटौती करेंगे। बजट में कटौती से घर में कलह होगी। जीवन नरक बन जाएगा। बचत के संबंध में किसी कवि की ये पंक्तियाँ मानव के लिए उचित चेतावनी हैं-
सकल धन संग्रह करे, आवे कोर्ड दिन काम।
समय परे पै ना मिले, माटी खर्चे दाम।।
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